Ndtv की घटनाओं से मशहूर उपन्यासकार जेफ्री आर्चर का एक बेहतरीन उपन्यास " कैन एंड एबल" याद आ गया। उसमे इसी तरह के व्यवसायिक पैंतरे और कंपनियों में प्रतिशत हिस्सेदारी जबरदस्ती खरीदने के रोमांचक वर्णन थे।  d

Ndtv के किस्से को सरल उदाहरण से समझिए-

  • प्रणव राय ने 2009–10 में ndtv के 29% शेयर(वारंटी के रूप में) किसी कंपनी के पास गिरवी रखे ,बदले में कुछ करोड़ रुपये लिए।
  • इनके बीच जो लिखापढ़ी हुई उसमे ये साफ लिखा था कि 10 सालों में ये धन वापस देना होगा,नही दे पाए तो कंपनी ndtv के शेयर बेच सकती है।
  • आज इस बात को 13 सांल हो गए, ndtv वाले ये कर्ज़ नही चुका पाए तो कंपनी ने अपना हिस्सा बेच दिया।
  • प्रणव राय सहानुभूति लेने के लिए झूठ बोल रहा है कि मुझसे तो पूछा ही नही !! उसको पता था कि क्या गिरवी रखा है और क्या शर्तें हैं।इतने बड़े चैनल का मालिक और व्यापारी दूध पीते बच्चों जैसे तर्क दे रहा है 😂।
  • 10 सांल होने के बाद बेचने से पहले पूछने की ज़रूरत थी ही नही।
  • बल्कि प्रणव रॉय ने अपने शेयर होल्डर्स को झूठ कहा था कि ndtv के मालिकाना हक गिरवी नही रखे हैं। जो अब पता चला कि गिरवी रखे गए थे।

सेबी का नियम है कि किसी कंपनी में 25% से ज्यादा हिस्सेदारी खरीदने पर ओपन आफर लाना ज़रूरी है तो अडानी ग्रुप वाले लाये हैं। अभी ये एक शेयर का 294 रुपये पर आफर दे रहे हैं जो बाजार मूल्य से कम है तो तुरंत तो 26% नही मिलने वाला न ही अडानी साहब जल्दी में लग रहे हैं।